Introduction of Ayurveda
आयुर्वेद में स्वस्थ व्यक्ति की परिभाषा इस प्रकार बताई है-
समदोषः समाग्निश्च समधातु मलक्रियाः।
प्रसन्नात्मेन्द्रियमनाः स्वस्थः इत्यभिधीयते ॥
( जिस व्यक्ति के दोष (वात, कफ और पित्त) समान हों, अग्नि सम हो, सात धातुयें भी सम हों, तथा मल भी सम हो, शरीर की सभी क्रियायें समान क्रिया करें, इसके अलावा मन, सभी इंद्रियाँ तथा आत्मा प्रसन्न हो, वह मनुष्य स्वस्थ कहलाता है )। यहाँ ‘सम’ का अर्थ ‘संतुलित’ ( न बहुत अधिक न बहुत कम) है।
आचार्य चरक के अनुसार स्वास्थ्य की परिभाषा-
सममांसप्रमाणस्तु समसंहननो नरः।
दृढेन्द्रियो विकाराणां न बलेनाभिभूयते॥१८॥
क्षुत्पिपासातपसहः शीतव्यायामसंसहः।
समपक्ता समजरः सममांसचयो मतः॥१९॥
अर्थात जिस व्यक्ति का मांस धातु समप्रमाण में हो, जिसका शारीरिक गठन समप्रमाण में हो, जिसकी इन्द्रियाँ थकान से रहित सुदृढ़ हों, रोगों का बल जिसको पराजित न कर सके, जिसका व्याधिक्ष समत्व बल बढ़ा हुआ हो, जिसका शरीर भूख, प्यास, धूप, शक्ति को सहन कर सके, जिसका शरीर व्यायाम को सहन कर सके , जिसकी पाचनशक्ति (जठराग्नि) सम़ावस्थ़ा में क़ार्य करती हो, निश्चित कालानुसार ही जिसका बुढ़ापा आये, जिसमें मांसादि की चय-उपचय क्रियाएँ सम़ान होती हों – ऐसे १० लक्षणो लक्षणों व़ाले व्यक्ति को आचार्य चरक ने स्वस्थ माना है।
काश्यपसंहिता के अनुसार आरोग्य के लक्षण-
अन्नाभिलाषो भुक्तस्य परिपाकः सुखेन च ।
सृष्टविण्मूत्रवातत्वं शरीरस्य च लाघवम् ॥
सुप्रसन्नेन्द्रियत्वं च सुखस्वप्न प्रबोधनम् ।
बलवर्णायुषां लाभः सौमनस्यं समाग्निता ॥
विद्यात् आरोग्यलिंङ्गानि विपरीते विपर्ययम् । – ( काश्यपसंहिता, खिलस्थान, पञ्चमोध्यायः )
भोजन करने की इच्छा, अर्थात भूख समय पर लगती हो, भोजन ठीक से पचता हो, मलमूत्र और वायु के निष्कासन उचित रूप से होते हों, शरीर में हलकापन एवं स्फूर्ति रहती हो, इन्द्रियाँ प्रसन्न रहतीं हों, मन की सदा प्रसन्न स्थिति हो, सुखपूर्वक रात्रि में शयन करता हो, सुखपूर्वक ब्रह्ममुहूर्त में जागता हो; बल, वर्ण एवं आयु का लाभ मिलता हो, जिसकी पाचक-अग्नि न अधिक हो न कम, उक्त लक्षण हो तो व्यक्ति निरोगी है अन्यथा रोगी है।
उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट है की आयुर्वेद किसी भी बाह्य रोग कारक को कमजोर करने की बजाय शरीर के संतुलित रहने पर जोर देता है | और शरीर का संतुलन तभी बना रहेगा जब प्रकृति के साथ चलेंगे ,यथा दिन , ऋतु व स्थान अनुसार उठना सोना , भोजन आदि |
संक्षेप में शरीर को असंतुलन से संतुलन की स्थिति बनाये रखने को ही आयु का विज्ञान आयुर्वेद कहते है |